Class 11 Accountancy Chapter 1 लेखाशास्त्र का परिचय practice

Class 11 Accountancy Chapter 1 लेखाशास्त्र का परिचय 

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RDS TEAM 


प्रश्न 1.पुस्तपालन लेखाशास्त्र की कौन-सी सीढ़ी है ?

उत्तर-
पुस्तपालन लेखाशास्त्र की पहली सीढ़ी है|

प्रश्न 2.पुस्तपालन का सामान्य अर्थ बताइए।

उत्तर-
पुस्तपालन का सामान्य अर्थ व्यवसाय के वित्तीय व्यवहारों को लेखा पुस्तकों में दर्ज करने से है।

प्रश्न 3.लेखांकन के अन्तर्गत क्या किया जाता है ?
उत्तर-
लेखांकन के अन्तर्गत अन्तिम खाते तैयार करना, उनका विश्लेषण करना, निष्कर्ष निकालना तथा परिणामों को रुचि रखने वाले व्यक्तियों एवं संस्थाओं को उपलब्ध कराने का कार्य किया जाता है। प्रश्न 4. लेखांकन के दो महत्वपूर्ण उद्देश्य बताइए।

उत्तर-

  • वित्तीय परिणाम एवं अन्य विश्लेषित सूचनाओं को उनके उपयोगकर्ताओं को उपलब्ध करवाना।
  • व्यवसाय के कर दायित्व का ठीक प्रकार से निर्धारण करने में सहायता प्रदान करना।

प्रश्न 5.
किस प्रकार के व्यावसायिक लेन-देनों को लेखांकन में लिखा जाता है ?
उत्तर-
व्यवसाय के ऐसे लेन-देन एवं घटनाएँ जिनका मुद्रा में मूल्यांकन किया जा सकता है उन्हें लेखांकन में लिखा जाता है।

प्रश्न 6.
व्यापारिक भवन में पाँच कम्प्यूटर लगे हुए हैं, इसका लेखा कैसे किया जायेगा ?
उत्तर-
यह एक गैर-मौद्रिक व्यवहार है, अतः इसका लेखांकन नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 7.
विक्रय प्रबन्धक एक बहुत ही योग्य एवं ईमानदार व्यक्ति है, इसका लेखा पुस्तकों में कैसे दर्ज करेंगे ?
उत्तर-
यह एक गैर-मौद्रिक व्यवहार है क्योंकि विक्रय प्रबन्ध की योग्यता एवं ईमानदारी का मुद्रा में मूल्यांकन नहीं हो सकता । अतः इसका लेखा नहीं हो सकती है।

प्रश्न 8.
क्या लेखांकन एक कला है ?
उत्तर-
हाँ, लेखांकन एक कला है।

प्रश्न-9.
लेखांकन को विज्ञान क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
लेखांकन के अपने निश्चित नियम एवं सिद्धान्त होते हैं जिनका प्रयोग करके व्यवसाय के लाभ-हानि एवं आर्थिक स्थिति को ज्ञात किया जाता है। इसलिए लेखांकन एक विज्ञान है।

प्रश्न 10.
लेखांकन प्रणालियों के नाम दीजिए।
उत्तर-
लेखांकन की निम्नलिखित तीन प्रणालियाँ हैं

  • इकहरा लेखा प्रणाली (Single Entry System)
  • दोहरा लेखा प्रणाली (Double Entry System)
  • महाजनी बहीखाता प्रणाली (Indian System of Accounting) ।

प्रश्न 11.
व्यवसाय में विक्रय किसे कहते हैं ?
उत्तर-
लाभ कमाने के उद्देश्य से क्रय किये गये या निर्मित माल को एक निश्चित प्रतिफल के बदले हस्तान्तरित करना व्यवसाय में विक्रय कहलाता है।

प्रश्न 12.
पूँजी से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
व्यवसाय के स्वामी द्वारा लाभ कमाने के उद्देश्य से व्यवसाय में लगाया गया धन पूँजी कहलाता है।

प्रश्न 13.
आहरण किसे कहते हैं ?
उत्तर-
व्यवसाय के स्वामी द्वारा अपने निजी प्रयोग हेतु व्यवसाय से निकाली गई नकद राशि या वस्तुएँ आहरण कहलाती हैं।

प्रश्न 14.
अल्पकालीन दायित्व का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर-
अल्पकालीन दायित्व का एक उदाहरण लेनदार है।

प्रश्न 15.
व्यक्तिगत खातों का नियम बताइए।
उत्तर-
व्यक्तिगत खातों का नियम–पाने वाले को नामे लिखो एवं देने वाले को जमा करो।
(Debit the receiver and credit the giver)


Class 11 Accountancy Chapter 1 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पुस्तपालन के अन्तर्गत रखी जाने वाली लेखी पुस्तकों के नाम बताइए।
उत्तर-
पुस्तपालन के अन्तर्गत मुख्य रूप से तीन लेखा पुस्तकें रखी जाती हैं

  1. जर्नल या रोजनामचा,
  2. रोकड़ बही
  3. खाताबही ।

कुछ बड़े व्यवसाय लेन-देनों की संख्या एवं आवश्यकता के आधार पर कुछ सहायक बहियाँ भी रखते हैं, जैसे क्रय बहीं,विक्रय बही,क्रय वापसी बही, विक्रय वापसी बही, प्राप्य बिल बही, देय बिल बही ।

प्रश्न 2.
पुस्तपालन को अपने शब्दों में परिभाषित कीजिए।
उत्तर-
पुस्तपालन की परिभाषा (Definition of Book-Keeping) – व्यवसाय के ऐसे लेन-देनों जिनका मुद्रा में मूल्यांकन किया जा सकता है, उनको व्यवसाय की प्रारम्भिक लेखा पुस्तकों में लिखना ही पुस्तपालन कहलाता है। अर्थात् पुस्तपालन के अन्तर्गत मुद्रा के रूप में मूल्यांकन किये जाने योग्य वित्तीय लेन-देनों एवं घटनाओं को पहचाना जाता है तथा उनका वर्गीकरण करके खाताबही । में खताया जाता है। अतः यह लेखांकन प्रणाली का पहला भाग है।

प्रश्न 3.
लेखांकन प्रणाली का मुख्य कार्य क्या है ? बताइए।
उत्तर-
लेखांकन प्रणाली का मुख्य कार्य व्यवसाय के व्यवहारों (लेन-देनों) के आधार पर एक निश्चित अवधि के पश्चात् व्यवसाय के लाभ-हानि एवं आर्थिक स्थिति की जानकारी प्रदान करना है।

प्रश्न 4.
लेखांकन का जिन अन्य महत्वपूर्ण शास्त्रों से सम्बन्थ है, उन सबके नाम लिखिए।
उत्तर-
लेखांकन का प्रमुख रूप से निम्नलिखित शास्त्रों के साथ सम्बन्ध है

  1. गणित (Mathematics)
  2. सांख्यिकी (Statistics)
  3. प्रबन्ध शास्त्र (Management)
  4. अर्थशास्त्र (Economics)
  5. विधिशास्त्र (Law)
  6. समाजशास्त्र (Sociology) ।

प्रश्न 5.
लेखांकन के उपक्षेत्र में आने वाले लेखांकनों के नाम दीजिए।
उत्तर-
लेखांकन के उपक्षेत्र में आने वाले मुख्य लेखांकन निम्नलिखित हैं

  • वित्तीय लेखांकन (Financial Accounting)
  • लागत लेखांकन (Cost Accounting)
  • प्रबन्धकीय लेखांकन (Management Accounting)
  • सामाजिक लेखांकन (Social Accounting)

प्रश्न 6.
महाजनी बहीखाता प्रणाली क्या है ?
उत्तर-
महाजनी बहीखाता प्रणाली (Indian System of Accounting)-यह लेखांकन की पूर्णतः स्वदेशी प्रणाली है। इसमें लेखा कार्य हेतु लम्बी-लम्बी बहियों का प्रयोग किया जाता है। इसमें रोकड़ बही, नकल बही,खाताबही आदि का प्रयोग किया जाता है। इस प्रणाली में लेखांकन का समस्त कार्य स्थानीय भाषा में होता है जिससे उसे समझना सरल होता है। यह प्रणाली इकहरा लेखा प्रणाली की अपेक्षा बेहतर है, लेकिन लेखांकन में कम्प्यूटर के बढ़ते उपयोग के कारण यह सीमित होती जा रही है। अब इस प्रणाली का उपयोग सीमित साधनों वाले मध्यम दर्जे के व्यवसायी ही करते हैं।


प्रश्न 7.
व्यवसाय के दायित्वों से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
व्यवसाय के दायित्वों से आशय उस राशि से है जो व्यवसाय द्वारा अन्य व्यक्तियों एवं संस्थाओं को चुकायी जानी है। सभी दायित्व व्यवसाय के स्थिति विवरण के दायित्व पक्ष में दर्शाये जाते हैं । दायित्व मुख्य रूप से निम्नलिखित प्रकार के होते हैं

  • बाहरी दायित्व (External Liabilities)
  • आन्तरिक दायित्व (Internal Liabilities)
  • अल्पकालीन दायित्व (Short-term Liabilities)
  • दीर्घकालीन दायित्व (Long-term Liabilities) ।

प्रश्न 8.
अदृश्य सम्पत्तियों के तीन उदाहरण लिखिए।
उत्तर-
अदृश्य सम्पत्तियों के तीन उदाहरण निम्नलिखित हैं

  • ख्याति
  • कॉपीराइट
  • पेटेण्ट

प्रश्न 9.
स्थायी सम्पत्तियों का अर्थ बताइए दो उदाहरण भी दीजिए।
उत्तर-
ऐसी सम्पत्तियाँ जिन्हें व्यवसाय में उपयोग हेतु लम्बे समय तक रखा जा सकता है, स्थायी सम्पत्तियाँ कहलाती हैं। जैसे-भवन, फर्नीचर, मशीनरी, भूमि आदि।

प्रश्न 10.
दोहरा लेखा प्रणाली का सामान्य रूप से अर्थ लिखिए।
उत्तर-
दोहरा लेखा प्रणाली का अर्थ (Meaning of Double Entry System)-प्रत्येक व्यापारिक लेन-देन के दो पक्ष होते हैं। लेखा करते समय इनमें से एक पक्ष को नामे तथा दूसरे पक्ष को जमा लिखा जाता है। चूंकि इस प्रणाली में दोनों पक्षों का लेखा किया जाता है इसलिए इसे दोहरा लेखा प्रणाली कहते हैं। यह विश्वस्तरीय एवं विश्वसनीय लेखा पद्धति है। इसका उद्भव लूकास पेसीयोली द्वारा अपनी पुस्तक ‘डी कम्पेसेट स्क्रिपचर्स के माध्यम से सन् 1494 ई.में किया गया था ।


प्रश्न 11.
लेखांकन की दो परम्पराएँ बताइए।
उत्तर-
लेखांकन की दो परम्पराएँ निम्नलिखित हैं-

  • एकरूपता की परम्परा (Convention of Consistency)
  • पूर्ण प्रकटीकरण की परम्परा (Convention of Full Disclosure) ।

प्रश्न 12.
लेखांकन की तीन अवधारणाओं के नाम दीजिए।
उत्तर-
लेखांकन की तीन अवधारणाएँ निम्नलिखित हैं

  • व्यावसायिक इकाई अवधारणा (Business Entity Concept)
  • मुद्रा मापन अवधारणा (Money Measurement Concept)
  • लेखांकन अवधि अवधारणा (Accounting Period Concept)।

प्रश्न 13.
लेखांकने सूचनाओं का उपयोग करने वाले पक्षकारों के नाम बताइए।
उत्तर-
लेखांकन सूचनाओं का उपयोग करने वाले पक्षकार निम्नलिखित हैं

  • सरकार
  • समाज
  • अंशधारी
  • ऋणदाता
  • प्रबन्धक/अधिकारी
  • कर-निर्धारण अधिकारी आदि।

प्रश्न 14.
दोहरा लेखा प्रणाली में लेखांकन हेतु प्रयुक्त नियमों को (विभिन्न प्रकार के खातों के लिए) लिखिए।
उत्तर-
दोहरा लेखा प्रणाली में लेखांकन हेतु प्रयुक्त नियम निम्नलिखित हैं

  • व्यक्तिगत खातों के लिए पाने वाले को नामे लिखो एवं देने वाले को जमा करो। (Debit the receiver and credit the giver)
  • वास्तविक खातों के लिए आने वाली वस्तु को नामे लिखो एवं जाने वाली वस्तु को जमा करो। (Debit what comes in and credit what goes out)
  • नाममात्र के खातों के लिए समस्त खर्चे एवं हानियों को नामे लिखो एवं समस्त आय एवं लाभों को जमा करो। (Debit all expenses and losses and credit all incomes and profits)

 Class 11 Accountancy Chapter 1 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जहाँ पुस्तपालन का कार्य समाप्त होता है वहाँ लेखांकन कार्य प्रारम्भ होता है। विस्तार से इस पर टिप्पणी दीजिए।
उत्तर-
पुस्तपालन एवं लेखांकन में सम्बन्ध को स्पष्ट करने के लिए सबसे पहले इन दोनों का अर्थ समझ लेना अत्यन्त आवश्यक है-

पुस्तपालन का अर्थ व्यवसाय के वित्तीय व्यवहारों को व्यवसाय की पुस्तकों में लिखना ही पुस्तपालन कहलाता है। पुस्तपालन लेखांकन प्रणाली का पहला भाग है। इसके अन्तर्गत उन सभी व्यावसायिक व्यवहारों का लेखा किया जाता है जिनका मुद्रा में मापन किया जा सकता है।

जे.आर. बाटलीबॉय ने लेखांकन को परिभाषित करते हुए लिखा है, “पुस्तपालन व्यवसाय के लेन-देनों को लेखा पुस्तकों में दर्ज करने की कला है।”
पुस्तपालन के अन्तर्गत सबसे पहले व्यवसाय के मौद्रिक एवं गैर-मौद्रिक व्यवहारों की पहचान की जाती है।
पहचान करने के पश्चात् मौद्रिक व्यवहारों का लेखा व्यवसाय की प्रारम्भिक लेखे की पुस्तकों में किया जाता है एवं खाताबही में पोस्टिंग की जाती है।
पुस्तपालन एक नैत्यक कार्य है जो व्यवसाय के सामान्य एवं कम कार्य कुशल व्यक्तियों द्वारा किया जाता है।

लेखांकन का अर्थ–पुस्तपालन समाप्त होने के बाद लेखांकन प्रारम्भ होता है। लेखांकन से आशय पुस्तपालन के अन्तर्गत किए गए लेखों से अन्तिम खाते तैयार करने, उन्हें सारांशित करने, उनका विश्लेषण करने, निष्कर्ष निकालने तथा उसे वांछित व्यक्तियों एवं संस्थाओं को उपलब्ध कराने से है। इस प्रकार लेखांकन प्रणाली लेखाशास्त्र का दूसरा भाग है।

पुस्तपालन एवं लेखांकन दोनों का अर्थ जानने के बाद यह स्पष्ट हो जाता है कि जहाँ पुस्तपालने का कार्य समाप्त होता है, वहाँ से लेखांकन का कार्य प्रारम्भ होता है।


प्रश्न 2.
लेखाशास्त्र से आप क्या समझते हैं ? इसके दोनों तत्व पुस्तपालन एवं लेखांकन को संक्षेप में समझाइए ।
उत्तर-
लेखाशास्त्र का आशय (Meaning of Accountancy)-ऐसा माना जाता है कि लेखांकन प्रणाली का उद्भव एवं विकास मानव सभ्यता के साथ ही हुआ है। मानव की याद रखने की क्षमता सीमित होती है जबकि व्यापार में लेन-देनों की संख्या अधिक होती है। इन सबको याद रखना सम्भव नहीं होता है, अतः यहीं से लेन-देनों को लिखने की परम्परा प्रारम्भ हो गयी तथा लेखाशास्त्र का विकास हुआ।

लेखाशास्त्र ज्ञान का एक विशेष क्षेत्र है जबकि लेखांकन प्रणाली लेखाशास्त्र हेतु अपनायी जाने वाली एक प्रक्रिया अपवा कार्यविधि है । लेखांकन की प्रणाली लेखाशास्त्र द्वारा स्थापित नियमों एवं सिद्धान्तों के आधार पर कार्य करती है । लेखांकन का आधार पुस्तपालन है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि पुस्तपालन लेखाशास्त्र की पहली सीढ़ी है एवं लेखांकन दूसरी सीढ़ी। अतः हमें लेखाशास्त्र को समझने के लिए पुस्तपालन एवं लेखांकन को समझना आवश्यक है।

पुस्तपालन का अर्थ (Meaning of Book-Keeping) पुस्तपालन का आशय मुद्रा में मूल्यांकन के योग्य व्यावसायिक व्यवहारों को प्रारम्भिक लेखा पुस्तकों में दर्ज करने से है।

जे.आर. बाटलीबॉय के अनुसार, “पुस्तपालन व्यावसायिक लेन-देनों को लेखा पुस्तकों में दर्ज करने की एक कला है।”

स्पष्ट है कि पुस्तपालन एक नैत्यक कार्य है तथा इसे व्यवसाय के क्रम कार्य कुशल व्यक्तियों अथवा लिपिकों द्वारा किया जा सकता है। पुस्तपालन के अन्तर्गत व्यवसाय के ऐसे वित्तीय व्यवहारों जिनका मुद्रा में मूल्यांकन किया जा सकता है उनकी पहचान करके उन्हें लेखा पुस्तकों में लिखा जाता है तथा उनका वर्गीकरण करके खाताबही में खताया जाता है ।।

लेखांकन का अर्थ (Meaning of Accounting) लेखांकन लेखाशास्त्र का द्वितीय भाग है तथा यह पुस्तपालन पर निर्भर होता है। लेखांकन कार्य के लिए अपेक्षाकृत अधिक योग्य एवं सक्षम व्यक्तियों की आवश्यकता होती है जिन्हें लेखापाल (Accountant) अथवा लेखा अधिकारी (Accounts Officer) कहते हैं। लेखांकन कार्य लेखाशास्त्र के सिद्धान्तों एवं नियमों के अनुरूप किया जाता है, अतः यह विश्लेषणात्मक एवं गतिशील प्रकृति का होता है।

लेखांकन के अन्तर्गत अन्तिम खाते (व्यापारिक एवं लाभ-हानि खाता तथा स्थिति विवरण) तैयार करके व्यावसायिक परिणाम ज्ञात किये जाते हैं। इन परिणामों का विश्लेषण करके निष्कर्ष निकाले जाते हैं जिन्हें उपयोगी सूचनाएँ तैयार करके वांछित व्यक्तियों एवं संस्थाओं को उपलब्ध करवाया जाता है।

प्रश्न 3.
लेखांकन के उपक्षेत्रों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर-
लेखांकन के उपक्षेत्र अथवा प्रकार (Types or Sub-fields of Accounting) लेखांकन के कई क्षेत्र चिह्नित किये। गये हैं जिनमें से कुछ प्रमुख क्षेत्र निम्नलिखित हैं
(i) वित्तीय लेखांकन (Financial Accounting) लेखांकन की इस शाखा का मुख्य उद्देश्य व्यावसायिक लेन-देनों को व्यवस्थित तरीके से लेखी पुस्तकों में लिखना, वर्गीकृत करना, अन्तम खाते तैयार कर वित्तीय परिणाम ज्ञात करना एवं व्यवसाय की आर्थिक स्थिति की जानकारी प्राप्त करना होता है। वित्तीय लेखांकन से सम्बन्धित सूचनाएँ प्राप्त करने वालों में समाज,सरकार, अंशधारी, ऋणप्रदाता, उपभोक्ता आदि प्रमुख हैं। लेखांकन का यह क्षेत्र छोटी-बड़ी सभी प्रकार की व्यावसायिक संस्थाओं के लिए उपयोगी होता है, लेकिन कम्पनी आदि के लिए यह कानूनी दृष्टि से भी अनिवार्य होता है।

(ii) लागत लेखांकन (Cost Accounting) लेखांकन की इस शाखा का मुख्य उद्देश्य संस्था द्वारा उत्पादित वस्तुओं तथा प्रदान की गयी सेवाओं की प्रति इकाई लागत ज्ञात करना है। इसमें लागत का पूर्वानुमान लगाकर उसकी तुलना वास्तविक लागत से की जाती है। इस प्रकार लाभ की मात्रा बढ़ाने के लिए वस्तु या सेवा की लागत को कम करने एवं नियन्त्रित करने का प्रयास किया जाता

(ii) प्रबन्धकीय लेखांकन (Management Accounting)-व्यवसाय की गतिविधियों का संचालन दक्षतापूर्वक करने के लिए प्रबन्ध को लेखांकन सूचनाएँ इस रूप में चाहिए होती हैं जिससे कि वे प्रबन्धकीय दायित्वों के निर्वहन में सहायता कर सकें । प्रबन्ध का मुख्य कार्य निर्णय लेना होता है तथा प्रबन्ध के निर्णयों की सफलता उसको प्राप्त उपयोगी सूचनाओं पर ही निर्भर करती है। प्रबन्ध द्वारा लेखांकन सूचनाओं की प्राप्ति एवं उनके विश्लेषण एवं उपयोग को प्रबन्ध लेखांकन कहा जाता है।

(iv) सामाजिक लेखांकन (Social Accounting)-
व्यवसाय को व्यापार करने हेतु अनेक साधन, जैसे-पूँजी, कच्चा माल, मानवीय श्रम आदि समाज से ही प्राप्त होते हैं। इसलिए व्यवसाय की भी समाज के प्रति कुछ करने की जिम्मेदारी होती है। इस जिम्मेदारी को व्यवसाय ने किस सीमा तक अदा किया, इस बारे में प्रबन्धकों द्वारा दी गयी रिपोर्ट को सामाजिक लेखांकन के द्वारा ही तैयार किया जाता है।

प्रश्न 4.
इकहरा लेखा प्रणाली को समझाते हुए इसकी कमियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
इकहरा लेखा प्रणाली लेखांकन की वह प्रणाली जिसमें दोहरा लेखा प्रणाली के सिद्धान्तों का पूर्ण ध्यान नहीं रखा जाता है अर्थात् कुछ व्यवहारों का तो दोहरा लेखा हो जाता है, कुछ का इकहरा लेखा ही होता है और कुछ का तो लेखा होता ही नहीं है,इकहरा लेखा प्रणाली कहलाती है। इसमें लेखा करने के कोई निश्चित नियम नहीं हैं। इसमें सामान्यतः रोकड़ी लेन-देनों को रोकड़ पुस्तक में लिखा जाता है तथा उधार लेन-देनों को स्मरण पुस्तक में लिखा जाता है। यह व्यापारिक लेन-देनों को लिखने की एक अपूर्ण एवं अव्यावहारिक प्रणाली है। इसमें शुद्धता जाँचने के लिए तलपट नहीं बनाया जाता है तथा लाभ-हानि का भी केवल अनुमान ही लगाया जा सकता है।

इकहरा लेखा प्रणाली की कमियाँ इकहरा लेखा प्रणाली की अनेक कमियाँ हैं

  • यह एक अपूर्ण, अवैज्ञानिक एवं उलझनों भरी प्रणाली है।
  • इससे ज्ञात परिणाम विश्वसनीय नहीं होते।
  • इससे प्रदर्शित परिणाम न्यायालय द्वारा प्रमाणित नहीं होते ।
  • इस पद्धति से लेखे रखने पर तुलनात्मक अध्ययन सम्भव नहीं है।
  • इसके अन्तर्गत लेखांकन के मूलभूत सिद्धान्तों का प्रयोग नहीं किया जाता है।
  • इस प्रणाली में लेखा मानकों का प्रयोग सम्भव नहीं है।
  • अपूर्ण लेखा होने के कारण इस प्रणाली में गणितीय शुद्धता की जाँच सम्भव नहीं है।

प्रश्न 5.
लेखांकन में प्रयुक्त शब्दावली में से किन्हीं पाँच महत्वपूर्ण पदों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
लेखांकन में प्रयुक्त पाँच महत्वपूर्ण शब्दावलियाँ निम्नलिखित हैं
(i) आयगत प्राप्तियाँ (Revenue Receipts)-वे प्राप्तियाँ जो नियमित अथवा आवृतक प्रकृति की होती हैं, लेखांकन में उन्हें आयगत प्राप्तियाँ कहते हैं। जैसे-विक्रय से प्राप्तियाँ, किराये की प्राप्ति, क्रय पर कमीशन आदि।

(ii) पूँजीगत प्राप्तियाँ (Capital Receipts)-ऐसी प्राप्तियाँ जो नियमित अथवा आवृतिक रूप से प्राप्त नहीं होती हैं अर्थात् कभी-कभी प्राप्त होती है वे पूँजीगत प्राप्तियाँ कहलाती हैं। जैसे—स्थायी सम्पत्ति के विक्रय से प्राप्ति आदि ।।

(iii) प्राप्य बिल (Bills Receivable)-उधार माल क्रय करने वाले व्यक्ति एवं संस्थाएँ कभी-कभी अपने बकाया भुगतान के बदले व्यवसाय के पक्ष में बिल स्वीकार करके दे देते हैं, इन बिलों का भुगतान उन पर अंकित तिथि पर हो जाता है तथा आवश्यकता होने पर उन्हें बैंक से बड़े पर भुनाया भी जा सकता है।

(iv) देय बिल (Bills Payable)-जब व्यवसाय द्वारा किसी व्यक्ति या संस्था को देय भुगतान के बदले इसके द्वारा लिखे गये बिल को स्वीकार कर लिया जाता है तो वह प्रपत्र देय बिल कहलाता है। इसका भुगतान व्यवसाय द्वारा निश्चित अवधि के पश्चात् कर दिया जाता है।’

(v) व्यय (Expenses)–व्यय वह राशि होती है जो किसी वस्तु या सेवा को बनाने एवं बेचने के सम्बन्ध में खर्च की जाती है। व्ययों को मोटे तौर पर अग्रलिखित दो भागों में बाँटा जा सकता है–

(a) प्रत्यक्ष व्यय (Direct Expenses)एक व्यापारिक संस्था के वे व्यय जो प्रत्यक्ष रूप से अथवा सीधे-सीधे किसी विशेष उत्पाद या सेवा से सम्बन्धित होते हैं उन्हें प्रत्यक्ष व्यय कहते हैं । जैसे—किसी उत्पाद विशेष की सामग्री,मजदूरी, बिजली आदि पर किया गया व्यय ।।

(b) अप्रत्यक्ष व्यय (Indirect Expenses)-ऐसे व्यय जो किसी विशेष उत्पाद या सेवा से सीधे-सीधे सम्बन्धित नहीं होते, लेकिन उनका कुछ भाग उस उत्पाद के लिए व्यय होता है वे अप्रत्यक्ष व्यय कहलाते हैं। ऐसे व्यय एक से अधिक उत्पादों से सम्बन्धित होते हैं तब ऐसे उत्पादों को कुछ निश्चित आधारों पर विभिन्न उत्पादों के मध्य विभाजित किया जाता है।

प्रश्न 6.
इकहरा लेखा प्रणाली एवं दोहरा लेखा प्रणाली में अन्तर का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
दोहरा लेखा पद्धति तथा इकहरा लेखा पद्धति में अन्तर ।
(Difference Between Double Entry System and Single Entry System)

आधार
(Basis)
दोहरा लेखा पद्धति
(Double Entry System)
इकहरा लेखा पद्धति
(Single Entry System)
(i) सिद्धान्त (Principles)यह दोहरा लेखा सिद्धान्त तथा निश्चित मान्यताओं पर आधारित है।यह किसी गणना या सिद्धान्त पर आधारित नहीं है।
(ii) खाते (Accounts)इसमें व्यक्तिगत, वास्तविक तथा नाममात्र तीनों ही प्रकार के खाते तैयार किये जाते हैं।इसमें रोकड़ बही तथा व्यक्तिगत खाते ही तैयार किये जाते हैं।
(iii) प्रयोग (Use)इस पद्धति का प्रयोग व्यापक रूप से किया जाता है।इसका प्रयोग केवल छोटे व्यापारी ही करते है।
(iv) प्रविष्टियाँ (Entries)इस पद्धति में सभी लेन-देनों की दो प्रविष्टियाँ की जाती हैं।इस पद्धति में कुछ लेन-देनों की दो, कुछ की एक प्रविष्टि की जाती है तथा कुछ लेन-देनों का लेखा ही नहीं किया जाता है।
(v) व्यवसाय का मूल्यांकन (Valuation of Business)इस पद्धति में व्यापार बेचने पर मूल्यांकन करना सरल होता है क्योंकि सभी लेखे पूर्ण रूप से किये जाते हैं।इसमें अनुमान से ही व्यापार का मूल्यांकन किया जाता है।
(vi) तलपट (Trial Balance)इसमें तलपट बनाकर खातों की गणितीय शुद्धता जाँच ली जाती है।इसमें तलपट नहीं बनाया जाता है।
(vi) शुद्ध लाभ/हानि (Net Profit/Loss)इसमें लाभ-हानि खाता बनाकर शुद्ध लाभ/हानि की गणना की जा सकती है ।इसमें शुद्ध लाभ/हानि की गणना ठीक प्रकार करना सम्भव नहीं है।
(vi) वित्तीय-स्थिति (Financial Position)इसमें चिट्ठा खातों के आधार पर बनाया जाता है जिससे वह सही आर्थिक स्थिति बताता है।इसमें स्थिति-पत्रक अनुमान एवं स्मरण के आधार पर बनाया जाता है। अतः यह चिट्टे के समान विश्वसनीय नहीं होता है।
(ix) प्रमाणिकता (Authenticity)यह न्यायालय एवं कर विभाग द्वारा मान्यता प्राप्त है।यह मान्यता प्राप्त नहीं है।

प्रश्न 7.
लेखांकन की महत्वपूर्ण अवधारणाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:-
लेखांकन की महत्वपूर्ण अवधारणाएँ निम्नलिखित हैं
(i) व्यावसायिक इकाई अवधारणा (Business Entity Concept) इस अवधारणा के अनुसार व्यवसाय तथा उसके स्वामी का अस्तित्व अलग-अलग माना जाता है। स्वामी जो पूँजी व्यवसाय में लगाता है वह व्यवसाय का दायित्व होती है जिससे वह व्यवसाय का लेनदार हो जाता है तथा वह जो आहरण करता है उसे पूँजी में से घटाया जाता है। ऐसा करने का प्रमुख उद्देश्य व्यवसाय के लाभ-हानि तथा आर्थिक स्थिति का सही आकलन करना होता है । यही कारण है कि लेखे भी व्यवसाय के दृष्टिकोण से ही किये जाते। हैं न कि स्वामी के दृष्टिकोण से।

(ii) मुद्रा मापन अवधारणा (Money Measurement Concept) इस अवधारणा के अनुसार केवल उन्हीं घटनाओं या लेन-देनों का लेखा पुस्तकों में किया जा सकता है जिनका मूल्यांकन मुद्रा में हो सकता है। अर्थात् लेखांकन मौद्रिक इकाई में ही किया जा सकता है न कि मात्रात्मक या अन्य किसी इकाई में।

(iii) व्यवसाय अवधारणा (Business Concept) इस अवधारणा के अन्तर्गत यह माना जाता है कि व्यवसाय लम्बे समय तक चलता रहेगा। इसी को आधार मानकर व्ययों को आयगत तथा पूँजीगत दो भागों में तथा सम्पत्तियों को चालू एवं स्थाई इन दो भागों में विभाजित कर लेखा किया जाता है। बाह्य पक्ष के साथ दीर्घकालीन समझौते होना तथा बाह्य पक्ष से अंश, ऋणपत्र आदि खरीदना तथा दीर्घकालीन ऋण देना यह सब व्यवसाय अवधारणा के द्वारा ही सम्भव होता है। लेकिन संयुक्त साहस आदि की स्थिति में जहाँ व्यवसाय का समय पूर्व निर्धारित होता है वहाँ लेखे उसी के अनुसार किये जाते हैं।

(iv) लेखांकन अवधि अवधारणा (Accounting Period Concept)-इस अवधारणा के अनुसार एक वर्ष (सामान्यतया 1 अप्रैल से 31 मार्च) का समय एक लेखा वर्ष या वित्तीय वर्ष माना जाता है। वित्तीय वर्ष की समाप्ति पर ही अन्तिम खाते बनाये जाते हैं। इसी के आधार पर आय-व्यय का विभाजन आयगत एवं पूँजीगत के रूप में किया जाता है।

(v) लागत अवधारणा (Cost Concept)-इस अवधारणा के अनुसार चल (Movable) एवं अचल (Fixed) सम्पत्तियों का लेखा बाजार मूल्य पर न करके लागत मूल्य पर किया जाता है। लागत मूल्य में सम्पत्ति के क्रय मूल्य के साथ-साथ उसे काम में लाने योग्य बनाने हेतु किये गये अन्य व्यय, जैसे—लाने का भाड़ा, स्थापना व्यय आदि भी सम्मिलित होते हैं। प्रतिवर्ष लागत मूल्य में से हांस घटाकर ही स्थिति विवरण में सम्पत्ति को दर्शाया जाता है।

(vi) द्विपक्षीय अवधारणा (Dual Aspect Concept)-इस अवधारणा के अनुसार प्रत्येक लेन-देन से दो खाते प्रभावित होते हैं एक नाम होता है तथा दूसरा जमा । यही कारण है कि नाम तथा जमा पक्ष का योग हमेशा बराबर रहता है। अर्थात् व्यवसाय की कुल सम्पत्तियों को मूल्य स्वामी की पूँजी व बाहरी लेनदारों के बराबर होता है ।

(vii) आय वसूली अवधारणा (Revenue Recognition Concept) इस अवधारणा के अनुसार विक्रय आदि के मूल्य प्राप्त होने पर ही उसे आगम माना जाता है ब्याज, कमीशन, लाभांश आदि को आगम तभी माना जा सकता है जबकि व्यवसाय को उन्हें प्राप्त करने का कानूनी अधिकार प्राप्त हो गया हो । बिक्री को विक्रय की तिथि से तथा ब्याज, कमीशन, लाभांश आदि को समय के आधार पर आगम मान लिया जाता है।

(viii) मिलान अवधारणा (Matching Concept)-इस अवधारणा के अनुसार आगम को तभी मान्यता प्रदान कर दी जाती है जबकि विक्रय हो जाता है या सेवा प्रदान कर दी जाती है, रोकड़ प्राप्त हो या नहीं। इसी प्रकार व्यय को भी सभी मान्यता प्रदान कर दी जाती है जबकि सम्पत्ति या आगम का अर्जन हो गया हो। इस प्रकार वर्ष के अन्त में उस वर्ष से सम्बन्धित आगमों एवं ऋणों को लाभ-हानि खाते में लिखकर लाभ-हानि की गणना कर ली जाती है।

(ix) वस्तुपरकता अवधारणा (Objectivity Concept) इस अवधारणा के अन्तर्गत प्रत्येक लेन-देन के लेखा हेतु उचित प्रलेख या प्रमाणक होना चाहिए तथा लेखांकन किसी व्यक्ति विशेष लेखांकार से प्रभावित नहीं होना चाहिए।

 Class 11 Accountancy Chapter 1 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

 Class 11 Accountancy Chapter 1 

प्रश्न 1.
लेखाशास्त्र की पहली सीढ़ी है
(अ) लेखांकन
(ब) पुस्तपालन
(स) वाणिज्य
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(ब) पुस्तपालन

प्रश्न 2.
लेखांकन है
(अ) एक कला
(ब) एक विज्ञान
(स) कला एवं विज्ञान दोनों
(द) कोई नहीं।
उत्तर-
(स) कला एवं विज्ञान दोनों

प्रश्न 3.
लेखांकन की प्रणाली को मोटे रूप में कितने भागों में बाँटा जा सकता है ?
(अ) तीन
(ब) चार
(स) दो
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(स) दो

प्रश्न 4.
अपूर्ण एवं अविश्वसनीय लेखा प्रणाली है
(अ) इकहरा लेखा प्रणाली
(ब) दोहरा लेखा प्रणाली
(स) महाजनी लेखा प्रणाली
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(अ) इकहरा लेखा प्रणाली

प्रश्न 5.
दोहरा लेखा प्रणाली का उद्भव माना जाता है
(अ) सन् 1949 में
(ब) सन् 1449 में
(स) 1594 में
(द) सन् 1494 में।
उत्तर-
(द) सन् 1494 में।

RBSE Class 11 Accountancy Chapter 1 अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
लेखाशास्त्र की दूसरी सीढ़ी क्या है ?
उत्तर-
लेखाशास्त्र की दूसरी सीढ़ी लेखांकन है।

प्रश्न 2.
लेखांकन का आधार क्या है ?
उत्तर-
लेखांकन का आधार पुस्तपालन है।

प्रश्न 3.
लेखांकन प्रणाली का उद्भव कब से माना जाता है ?
उत्तर-
ऐसा माना जाता है कि लेखांकन प्रणाली का उद्भव मानव सभ्यता के साथ ही हुआ है।

प्रश्न 4.
लेखांकन का कार्य करने वाले व्यक्ति को क्या कहा जाता है ?
उत्तर-
लेखापाल (Accountant) अथवा लेखा अधिकारी (Accounts Officer) ।

प्रश्न 5.
क्या लेखांकन एक कला है/विज्ञान है अथवा दोनों है ?
उत्तर-
लेखांकन कला एवं विज्ञान दोनों है।

प्रश्न 6.
लेखांकन के विभिन्न उपक्षेत्रों के नाम लिखिए।
उत्तर-

  • वित्तीय लेखांकन,
  • लागत लेखांकन,
  • प्रबन्धकीय लेखांकन,
  • सामाजिक लेखांकन

प्रश्न 7.
लेखांकन के साथ सम्बन्ध रखने वाले किन्हीं दो अन्य शास्त्रों के नाम बताइए।
उत्तर-

  • प्रबन्ध शास्त्र,
  • समाजशास्त्र ।

प्रश्न 8.
वह कौन-सी लेखा प्रणाली है जिसमें विभिन्न सूचनाओं के लिए मूल प्रमाणकों पर ही निर्भर रहना होता है ?
उत्तर-
इकहरा लेखा प्रणाली ।

प्रश्न 9.
एक व्यावसायिक लेन-देन के कितने पक्ष होते हैं ?
उत्तर-
एक व्यावसायिक लेन-देन के दो पक्ष होते हैं।

प्रश्न 10.
खाते कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर-
खाते तीन प्रकार के होते है

  • व्यक्तिगत खाते,
  • वास्तविक खाते तथा
  • नाममात्र के खाते ।

प्रश्न 11.
बेचने के लिए खरीदा गया माल क्या कहलाता है ?
उत्तर-
बेचने के लिए खरीदा गया माल क्रय कहलाता है।

प्रश्न 12.
दोहरा लेखा प्रणाली में लेखांकन कार्य किस भाषा में किया जाता है ?
उत्तर-
अंग्रेजी भाषा में।

प्रश्न 13.
सम्पत्तियों के कोई दो प्रकार बताइए।
उत्तर-

  • स्थायी सम्पत्तियाँ,
  • चालू सम्पत्तियाँ।

प्रश्न 14.
दायित्वों के दो प्रकार बताइए।
उत्तर-

  • बाहरी दायित्व,
  • आन्तरिक दायित्व ।

प्रश्न 15.
व्ययों को सामान्य रूप से किन दो भागों में बाँटा जा सकता है ?
उत्तर-

  • प्रत्यक्ष व्यय,
  • अप्रत्यक्ष व्यय ।

प्रश्न 16.
आयगत व्ययों के दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर-

  • मजदूरी एवं वेतन,
  • कार्यालय के खर्चे ।

प्रश्न 17.
पूँजीगत व्यय के दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर-

  • स्थायी सम्पत्तियों का क्रय,
  • मरम्मत पर हुए असाधारण व्यय

Class 11 Accountancy Chapter 1 लघु उत्तरीय प्रश्न (I)

प्रश्न 1.
लेन-देनों को लिखने की परम्परा कैसे प्रारम्भ हुई ?
उत्तर-
मानव की याद रखने की क्षमता सीमित होती है जबकि व्यापार एवं उद्योग में लेन-देनों की संख्या अधिक होती है जिन्हें याद रखना सम्भव नहीं होता है। लेन-देनों को भूलने पर व्यवसाय में हानि होने की सम्भावना बनी रहती है अतः लेन-देनों को लिखने की परम्परा प्रारम्भ हो गयी।

प्रश्न 2.
लेखाशास्त्र को संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
लेखाशास्त्र ज्ञान का एक विशेष क्षेत्र है जबकि लेखांकन प्रणाली इसके लिए अपनायी जाने वाली एक प्रक्रिया या कार्यविधि है तथा लेखांकन प्रक्रिया का आधार पुस्तपालन है। अतः पुस्तपालन लेखाशास्त्र की पहली सीढ़ी है तथा लेखांकन दूसरी सीढ़ी है।

प्रश्न 3.
पुस्तपालने का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
पुस्तपालन का आशय व्यवसाय से सम्बन्धित ऐसे मौद्रिक लेन-देनों जिनका मूल्यांकन किया जा सकता है उनको प्रारम्भिक लेखा पुस्तकों में लिखने से है । जे. आर. बाटलीबॉय के अनुसार, “पुस्तपालन व्यावसायिक लेन-देनों को लेखा पुस्तकों में दर्ज करने की एक कला है।”

प्रश्न 4.
लेखांकन को परिभाषित कीजिए।
उत्तर-
लेखांकन का आशय पुस्तपालन के अन्तर्गत किये गये लेखों से सारांश निकालकर उसका विश्लेषण करके निष्कर्ष निकालने तथा उसे वांछित व्यक्तियों एवं संस्थाओं को उपलब्ध कराने से है।

प्रश्न 5.
स्पष्ट कीजिए कि पुस्तपालन लेखांकन प्रणाली का प्रारम्भिक भाग है।
उत्तर-
लेन-देन के तत्काल बाद में पुस्तपालन में लेखा किया जाता है। अतः यह एक नैत्यक एवं कम कार्य कुशलता का कार्य है। इस कार्य हेतु विशेष कार्य कुशलता एवं योग्यता की आवश्यकता नहीं होती है, लेकिन इसे नियमित रूप से करना आवश्यक होता है । अतः यह लेखांकन प्रणाली को प्रारम्भिक भाग है।

प्रश्न 6.
पुस्तपालन एवं लेखांकन के कोई दो उदेश्य बताइए।
उत्तर-

  • मुद्रा में मूल्यांकन योग्य एवं वित्तीय प्रकृति के लेन-देनों की पहचान करना तथा उन्हें लेखा पुस्तकों में दर्ज करना।
  • पहचान किये गये लेन-देनों का वर्गीकरण करना, उनको खाताबही में खतानी एवं उनकी गणितीय शुद्धता की जाँच करना।

प्रश्न 7.
इकरा लेखा प्रणाली में स्थिति विवरण बनाना क्यों सम्भव नहीं होता है ?
उत्तर-
इकहरा लेखा प्रणाली में लेन-देनों का पूरा रिकॉर्ड नहीं रखा जाता है। उपलब्ध रिकॉर्ड से मोटे तौर पर लाभ-हानि की गणना कर ली जाती है तथा एक निश्चित अवधि की समाप्ति पर स्थिति विवरण के स्थान पर वित्तीय मामलों का विवरण (Statement of Affairs) तैयार किया जाता है।

प्रश्न 8.
इकहरा लेखा प्रणाली में गणितीय शुद्धता की जाँच करना सम्भव नहीं होता है। क्यों ?
उत्तर-
इस प्रणाली में लेखांकन के मूलभूत सिद्धान्तों के अनुसार लेखा कार्य नहीं किया जाता है तथा इसमें लेखा मानकों का उपयोग भी सम्भव नहीं होता है। अतः अपूर्ण लेखा रिकॉर्ड की वजह से इस प्रणाली में गणितीय शुद्धता की जाँच नहीं की जा सकती

प्रश्न 9.
स्पष्ट कीजिए कि इकहरा लेखा प्रणाली छोटे व्यवसायियों के लिये उपयुक्त है।
उत्तर-
इकहरा लेखा प्रणाली बहुत ही सरल तथा कम खर्चीली प्रणाली है जिसका पालन करने के लिए बहुत ही साधारण ज्ञान की आवश्यकता होती है। इस प्रणाली में भारी भरकम लेखा पुस्तक एवं विशेष ज्ञान की आवश्यकता नहीं होती है, अतः यह छोटे व्यवसायियों के लिए उपयुक्त होती है।

प्रश्न 10.
दोहरा लेखा प्रणाली पूर्ण वैज्ञानिक एवं विश्वसनीय है। सिद्ध कीजिए।
उत्तर-
दोहरा लेखा प्रणाली में लेखांकन के सभी सिद्धान्तों एवं परम्पराओं का पालन किया जाता है। इसमें व्यापारिक एवं लाभ-हानि खाता बनाया जाता है तथा अन्तिम खाते तैयार करते समय समायोजनों का भी ध्यान रखा जाता है। अतः यह एक पूर्ण वैज्ञानिक एवं विश्वसनीय प्रणाली है।।

प्रश्न 11.
विक्रय से क्या आशय है ?
उत्तर-
विक्रय (Sales) – विक्रय से आशय ऐसे माल की बिक्री से है जिसे पुनः विक्रय के उद्देश्य से ही क्रय किया गया है। इसी प्रकार किसी सेवा प्रदाता द्वारा प्राप्त आयगत राशि विक्रय कहलायेगी। विक्रय में नकद एवं उधार दोनों को शामिल किया जाता है। लेकिन किसी सम्पत्ति; जैसे-फर्नीचर,मशीनरी आदि का विक्रय व्यावसायिक विक्रय में शामिल नहीं होता है।

प्रश्न 12.
काय वापसी क्या है ?
उत्तर-
क्रय वापसी (Purchase Return) – जब एक व्यापारी द्वारा क्रय किये गये माल को किसी भी कारण से वापस उसके विक्रेता के पास लौटाया जाता है तो यह क्रय वापसी कहलाता है। इसे बाह्य वापसी (Returns Outward) भी कहते हैं लेकिन किसी सम्पत्ति को वापस करना क्रय वापसी नहीं कहलायेगा ।

प्रश्न 13.
विक्रय वापसी क्या है ?
उत्तर-
विक्रय वापसी (Sales Return) – जब विक्रेता द्वारा बेचे गये माल को उसका क्रेता किसी कारणवश वापस लौटा देता है तो इस प्रकार के व्यवहार को विक्रय वापसी अथवा आन्तरिक वापसी कहते हैं।

प्रश्न 14.
पूँजी से क्या आशय है ?
उत्तर-
पूँजी (Capital) – यह वह धनराशि होती है जो व्यवसाय के स्वामी द्वारा व्यवसाय प्रारम्भ करने के लिए विनियोग की जाती है। पूँजी व्यापार का आन्तरिक दायित्व होती है। व्यवसाय में इसकी गणना सम्पत्तियों में से बाहरी दायित्वों को घटाकर की जाती है।

प्रश्न 15.
आहरण से क्या आशय है ?
उत्तर-
आहरण (Drawings) – आहरण से आशय व्यापारी द्वारा व्यापार से अपने व्यक्तिगत खर्चे या कार्यों के लिए निकाली गयी नकद राशि या माल से होता है। आहरण पर व्यापारी द्वारा व्यापार को ब्याज भी दिया जा सकता है।

प्रश्न 16.
सम्पत्तियाँ एवं दायित्वों से क्या आशय है ? ।
उत्तर-
सम्पत्तियाँ (Assets) – व्यवसाय में विद्यमान सभी मूर्त एवं अमूर्त वस्तुएँ जिनका व्यवसायी के लिए आर्थिक महत्व होता है वे सम्पत्तियाँ कहलाती हैं। जैसे-रोकड़, देनदार, प्राप्य बिल, मशीनरी, ट्रेडमार्क, भवन आदि। ये सभी सम्पत्तिय व्यापार के कुशल संचालन के लिए आवश्यक होती हैं।

दायित्व (Liabilities) – व्यवसाय के लिए व्यापारी द्वारा दूसरों से उधार ली गई सभी राशियाँ दायित्व कहलाती हैं, लेकिन इसमें व्यापार की पूँजी शामिल नहीं होती है। जैसे—लेनदार, देय बिल, बैंक ऋण, बैंक अधिविकर्ष, बन्धक ऋण इत्यादि।

प्रश्न 17.
देनदार एवं लेनदार से क्या आशय है ?
उत्तर-
देनदार (Debtors) – वे व्यक्ति या संस्थाएँ जिन पर व्यवसाय की राशि बकाया है उन्हें देनदार कहते हैं। वर्ष के अन्त में समस्त देनदारों को चिट्टे के सम्पत्ति पक्ष में दर्शाया जाता है।

लेनदार (Creditors) – वे व्यक्ति या संस्थाएँ जिनका फर्म के ऊपर कुछ बकाया है अर्थात् फर्म को जिन्हें भुगतान करना है उन्हें लेनदार कहते हैं। वर्ष के अन्त में समस्त लेनदारों को चिट्टे के दायित्व पक्ष में दिखाया जाता है।

प्रश्न 18.
दीर्घकालीन दायित्वों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
दीर्घकालीन दायित्व (Long Term Liabilities) – वे दायित्व जिनका भुगतान सामान्यतः एक लम्बी अवधि के बाद किया जाना होता है, उन्हें दीर्घकालीन दायित्व कहते हैं। जैसे दीर्घकालीन ऋणपत्र, पूर्वाधिकार अंश पूँजी एवं पूँजी आदि।

प्रश्न 19.
प्राप्य बिल क्या है ?
उत्तर-
प्राप्य बिल (Bills Receivable) – उधार माल क्रय करने वाले व्यक्ति एवं संस्थाएँ कभी-कभी अपने बकाया भुगतान के बदले व्यवसाय के पक्ष में बिल स्वीकार करके दे देते हैं। इन बिलों का भुगतान उन पर अंकित तिथि पर हो जाता है तथा आवश्यकता होने पर उन्हें बैंक से बड़े पर भुनाया भी जा सकता है।

प्रश्न 20.
देय बिल किसे कहते हैं ?
उत्तर-
देय बिल (Bills Payable) जब व्यवसाय द्वारा किसी व्यक्ति या संस्था को देय भुगतान के बदले उसके द्वारा लिखे गये बिल को स्वीकार कर लिया जाता है तो वह प्रपत्र देय बिल कहलाता है। इसका भुगतान व्यवसाय द्वारा निश्चित अवधि के पश्चात् कर दिया जाता है।

Class 11 Accountancy Chapter 1 लघु  प्रश्न (II)

प्रश्न 1.
पुस्तपालन के अन्तर्गत क्या-क्या कार्य किया जाता है ?
उत्तर-
पुस्तपालन का कार्य दैनिक रूप से किया जाता है। इसे कम कार्य कुशल एवं कम योग्य व्यक्ति भी आसानी से कर सकता है। यह एक लिपिकीय कार्य है। इसके अन्तर्गत निम्नलिखित कार्य किये जाते हैं

  • व्यवसाय के मुद्रा में मूल्यांकन योग्य लेन-देनों की पहचान करना।
  • पहचान किये गये लेन-देनों को लेखा पुस्तकों में लिखा जाता है तथा उनका वर्गीकरण करके उन्हें खाताबही में खताया जाता है।

प्रश्न 2.
लेखांकन का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
लेखांकन का अर्थ (Meaning of Accounting) लेखांकन लेखाशास्त्र का द्वितीय भाग है तथा यह पुस्तपालन पर निर्भर होता है। लेखांकन कार्य के लिए अपेक्षाकृत अधिक योग्य एवं सक्षम व्यक्तियों की आवश्यकता होती है जिन्हें लेखापाल (Accountant) अथवा लेखा अधिकारी (Accounts Officer) कहते हैं। लेखांकन कार्य लेखाशास्त्र के सिद्धान्तों एवं नियमों के अनुरूप किया जाता है, अतः यह विश्लेषणात्मक एवं गतिशील प्रकृति का होता है।

लेखाशास्त्र का परिवय लेखांकन के अन्तर्गत अन्तिम खाते (व्यापारिक एवं लाभ-हानि खाता तथा स्थिति विवरण) तैयार करके व्यावसायिक परिणाम ज्ञात किये जाते हैं। इन परिणामों का विश्लेषण करके निष्कर्ष निकाले जाते हैं जिन्हें उपयोगी सूचनाएँ तैयार करके वांछित व्यक्तियों एवं संस्थाओं को उपलब्ध करवाया जाता है।

प्रश्न 3.

पुस्तपालन एवं लेखांकन के उद्देश्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
पुस्तपालन एवं लेखांकन के उद्देश्य (Objectives of Book-Keeping and Accounting)-

  • मुद्रा में मूल्यांकन योग्य एवं वित्तीय प्रकृति के व्यावसायिक लेन-देनों का लेखा पुस्तकों में दर्ज करना ।
  • लेखा पुस्तकों में दर्ज लेन-देनों का वर्गीकरण करना तथा उनकी गणितीय शुद्धता की जाँच करना ।
  • एक निश्चित समयावधि (सामान्यतः एक वर्ष) में अर्जित किये गये लाभ-हानि तथा व्यवसाय की वित्तीय स्थिति की जानकारी प्रदान कराना।
  • व्यवसाय के प्रबन्धकों को उचित सूचनाएँ उपलब्ध कराना एवं उनकी कार्य कुशलता की सही तस्वीर पेश करना ।
  • वित्तीय परिणाम एवं अन्य आवश्यक सूचनाओं को उनके उपयोगकर्ताओं तक पहुँचाना।।
  • व्यवसाय के उचित कर दायित्व के निर्धारण में सहायता करना ।
  • लेखांकन की कानूनी आवश्यकताओं की पूर्ति करना।

प्रश्न 4.
लेखांकन विज्ञान है या कला या दोनों । समझाइए।
उत्तर-
लेखांकन विज्ञान है, कला है या दोनों (Accounting is a Science or Art or Both) – लेखांकन विज्ञान है या कला है या दोनों है, यह जानने के लिए पहले हम विज्ञान एवं कला दोनों का अर्थ समझें । किसी विषय के सुव्यवस्थित,क्रमबद्ध एवं नियमबद्ध अध्ययन को विज्ञान कहते हैं। इस रूप में हम देखें तो लेखांकन के भी निश्चित नियम हैं जो सर्वमान्य सिद्धान्तों एवं अवधारणाओं पर आधारित हैं अतः लेखांकन विज्ञान है। किसी कार्य को सर्वोत्तम रूप से करना अथवा विज्ञान द्वारा प्रतिपादित नियमों को व्यावहारिक रूप में उचित प्रकार क्रियान्वित करना कला है। इस रूप में हम देखें तो लेखापाल लेखांकन के सिद्धान्तों का उपयोग उचित योग्यता एवं निपुणता के साथ करता है अतः यह एक कला भी है। निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि लेखांकन विज्ञान एवं कला दोनों है।

प्रश्न 5.
पुस्तपालन एवं लेखांकन में अन्तर कीजिए।
उत्तर-
पुस्तपालन एवं लेखांकन में अन्तर
(Difference Between Book-keeping and Accounting)

पुस्तपालन (Book-Keeping)लेखांकन (Accounting)
(i) यह लेखाशास्त्र की पहली सीढ़ी है।यह लेखाशास्त्र की दूसरी सीढ़ी है।
(ii) इसमें वित्तीय प्रकृति के व्यापारिक लेन-देनों की पहचान की जाती है।इसमें वर्गीकृत लेन-देनों का सारांश तैयार किया जाता है।
(iii) इसमें पहचाने गये लेन-देनों का लेखा किया जाता है।इसमें लेन-देनों का विश्लेषण करके परिणाम जानने हेतु लाभ-हानि खाता तथा चिट्ठा बनाया जाता है।
(iv) इसका मुख्य उद्देश्य मौद्रिक लेन-देनों को लेखा पुस्तकों में दर्ज करना है।इसका मुख्य उद्देश्य व्यापार का लाभ-हानि ज्ञात करना तथा वित्तीय स्थिति की जानकारी प्रदान करना है ।
(v) इस कार्य को एक सामान्य पढ़ा-लिखा व्यक्ति भी कर सकता है।इस कार्य के लिए अपेक्षाकृत अधिक योग्य एवं अनुभवी व्यक्ति की आवश्यकता होती है।
(vi) इस कार्य हेतु विशेष ज्ञान की आवश्यकता नहीं होती है।इस कार्य हेतु विशेष ज्ञान की आवश्यकता होती है।
(vii) यह लेखांकन का आधार कार्य है।यह पुस्तपालने का कार्य समाप्त होने के बाद प्रारम्भ होता है।

प्रश्न 6.
लेखांकन के उपक्षेत्र के रूप में वित्तीय लेखांकन को समझाइए ।
उत्तर-
क्त्तिीय लेखांकन (Financial Accounting) – लेखांकन की इस शाखा का मुख्य उद्देश्य व्यावसायिक लेन-देनों को व्यवस्थित तरीके से लेखा पुस्तकों में लिखना, वर्गीकृत करना, अन्तिम खाते तैयार कर वित्तीय परिणाम ज्ञात करना एवं व्यवसाय की आर्थिक स्थिति की जानकारी प्राप्त करना होता है । वित्तीय लेखांकन से सम्बन्धित सूचनाएँ प्राप्त करने वालों में समाज, सरकार, अंशधारी, ऋणप्रदाता, उपभोक्ता आदि प्रमुख हैं। लेखांकन का यह क्षेत्र छोटी-बड़ी सभी प्रकार की व्यावसायिक संस्थाओं के लिए उपयोगी होता है लेकिन कम्पनी आदि के लिए यह कानूनी दृष्टि से भी अनिवार्य होता है।

प्रश्न 7.
लागत लेखांकन क्या है ?
उत्तर-
लागत लेखांकन (Cost Accounting) – लेखांकन की इस शाखा का मुख्य उद्देश्य संस्था द्वारा उत्पादित वस्तुओं तथा प्रदान की गयी सेवाओं की प्रति इकाई लागत ज्ञात करना है। इसमें लागत का पूर्वानुमान लगाकर उसकी तुलना वास्तविक लागत से की जाती है । इस प्रकार लाभ की मात्रा बढ़ाने के लिए वस्तु या सेवा की लागत को कम करने एवं नियन्त्रित करने का प्रयास किया जाता है।

प्रश्न 8.
प्रबन्धकीय लेखांकन से क्या आशय है ?
उत्तर-
प्रबन्धकीय लेखांकन (Management Accounting) – व्यवसाय की गतिविधियों का संचालन दक्षतापूर्वक करने के लिए प्रबन्ध का लेखांकन सूचनाएँ इस रूप में चाहिए होती हैं जिससे कि वे प्रबन्धकीय दायित्वों के निर्वहन में सहायता कर सकें । प्रबन्ध का मुख्य कार्य निर्णय लेना होता है तथा प्रबन्ध के निर्णयों की सफलता उसको प्राप्त उपयोगी सूचनाओं पर ही निर्भर करती है। प्रबन्ध द्वारा लेखांकन सूचनाओं की प्राप्ति एवं उनके विश्लेषण एवं उपयोग को प्रबन्ध लेखांकन कहा जाता है।

प्रश्न 9.
सामाजिक लेखांकन का क्या आशय है ?
उत्तर-
सामाजिक लेखांकन (Social Accounting) – व्यवसाय को व्यापार करने हेतु सभी साधन, जैसे—पूँजी. कच्चा माल, मानवीय श्रम आदि समाज से ही प्राप्त होते हैं। इसलिए व्यवसाय की भी समाज के प्रति कुछ करने की जिम्मेदारी होती है। इस जिम्मेदारी को व्यवसाय ने किस सीमा तक अदा किया, इस बारे में प्रबन्धकों द्वारा दी गयी रिपोर्ट को सामाजिक लेखांकन के द्वारा ही तैयार किया जाता है।

प्रश्न 10.
आप कैसे कह सकते हैं कि सांख्यिकी एवं लेखांकन के मध्य महत्वपर्ण सम्बन्ध है ?
उत्तर-
लेखांकन प्रणाली के अन्तर्गत सूचनाओं को सारांशित तथा विश्लेषित करने के साथ-साथ उनका निर्वचन एवं प्रस्तुतीकरण भी किया जाता है। प्रस्तुतीकरण हेतु अनेक प्रकार की टेबल,ग्राफ, डायग्राम आदि बनाकर संक्षेप में अधिक जानकारी प्रदान की जाती है। ये सब कार्य सांख्यिकीय सिद्धान्तों के आधार पर किये जाते हैं। इसलिए यह आवश्यक हो जाता है कि लेखांकन कार्य करने वाले व्यक्ति को सांख्यिकीय नियमों एवं सिद्धान्तों को भी ज्ञान हो । अतः सांख्यिकी एवं लेखांकन के मध्य महत्वपूर्ण सम्बन्ध होता

प्रश्न 11.
“अर्थशास्त्र के सिद्धान्त लेखांकन के लिए महत्वपूर्ण है।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
अर्थशास्त्र में पूँजी एक वटवृक्ष मानी जाती है और आय अथवा लाभ उस पर लगने वाला फल माना जाता है। अतः लेखांकन का कार्य करने वाले व्यक्ति को अर्थशास्त्र के सिद्धान्तों एवं नियमों का भली-भाँति ज्ञान होना चाहिए। पूँजी के प्रारम्भिक एवं अन्तिम शेर्षों के आधार पर अर्थशास्त्र में लाभ-हानि को समझाया जाता है, परन्तु लेखांकन में थोड़ा व्यावहारिक रुख अपनाकर लाभ-हानि की गणना की जाती है। अतः’अर्थशास्त्र के सिद्धान्त लेखांकन के लिए बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। आय की धारणा, लाभ की धारणा, पूँजी की धारणा आदि अर्थशास्त्र के ज्ञान से ही समझी जा सकती है।

प्रश्न 12.
इकहरा लेखा प्रणाली से क्या आशय है ?
उत्तर-
इकहरा लेखा प्रणाली (Single Entry System) – लेखांकन की यह प्रणाली अपूर्ण एवं अवैज्ञानिक है। इसमें कुछ संस्थाएँ रोकड़ एवं व्यक्तिगत लेन-देनों का ही लेखा करती है जबकि कुछ संस्थाएँ अव्यक्तिगत खातों से सम्बन्धित लेखे भी करती हैं। इस प्रकार कुछ लेन-देनों का दोहरा लेखा हो जाता है जबकि कुछ का इकहरा लेखा ही होता है। इस प्रणाली में शुद्धता की जाँच के लिए तलपट भी नहीं बनाया जाता है इसलिए लाभ-हानि एवं आर्थिक स्थिति का भी सही-सही अनुमान नहीं हो पाता है।

प्रश्न 13.
इकहरा लेखा प्रणाली की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
इकहरा लेखा प्रणाली की प्रमुख विशेषताएँ–

  • इसमें केवल व्यक्तिगत खाते तथा रोकड़ बही बनायी जाती है।
  • यह प्रणाली मूल प्रमाणकों पर ही निर्भर होती है। अतः कुछ जानकारी प्राप्त करनी हो तो मूल प्रमाणकों को ही देखना पंड़ता है।
  • इस प्रणाली में हमेशा एकरूपता का अभाव पाया जाता है। इसमें कोई व्यापारी अधिक सूचनाएँ रखता है तथा कोई कम सूचनाएँ रखता है।
  • यह सरल, सस्ती एवं लोचदार प्रणाली है। जो छोटे व्यापारियों के लिए उत्तम है।

प्रश्न 14.
इकहरा लेखा प्रणाली का सीमित उपयोग क्यों होता है ?
अथवा
इकहरा लेखा प्रणाली में क्या-क्या दोष हैं ?
उत्तर-
इकहरा लेखा प्रणाली अपूर्ण, अवैज्ञानिक एवं उलझनों से भरी हुई प्रणाली है। इसके अन्तर्गत ज्ञात किये गये परिणाम विश्वसनीय नहीं होते हैं। अतः आयकर विभाग, बिक्रीकर विभाग,अन्य सरकारी एवं अर्द्ध-सरकारी विभाग, न्यायालय आदि इसके ज्ञात परिणामों पर विश्वास नहीं करते हैं । व्यवसाय के विकास एवं विस्तार के साथ ही यह प्रणाली असफल हो जाती है अतः इसका बहुत ही सीमित उपयोग होता है। इसके अतिरिक्त इसमें बार-बार मूल प्रमाणकों को देखने के कारण कार्य भी असुविधाजनक हो जाता है ।।

प्रश्न 15.
दोहरा लेखा प्रणाली पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
उत्तर-
दोहरा लेखा पद्धति (Double Entry System) – यह दोहरा लेखा सिद्धान्त पर आधारित एवं विश्वसनीय लेखा पद्धति है। इसका उद्भव सन् 1494 ई. में माना जाता है। इस प्रणाली को लुकास पेसीयोली ने अपनी पुस्तक ‘डी कम्पेसेट स्क्रिपचर्स के माध्यम से विश्व के समक्ष पेश किया था । यह एक सुव्यवस्थित, सम्पूर्ण, विश्वसनीय, वैज्ञानिक एवं विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त लेखांकन प्रणाली है। इस प्रणाली में लेन-देन के दोनों पक्षों का लेखा किया जाता है । एक पक्ष को नाम (Debit) तथा दूसरे पक्ष को जमा (Credit) किया जाता है।

दोहरा लेखा प्रणाली के सिद्धान्त/नियम (Principles of Double Entry System)-इस प्रणाली में लेखा करने के लिए लेन-देनों को तीन भागों में बाँट लिया जाता है। उसी के अनुसार लेखा किया जाता है जो निम्न प्रकार है

  • व्यक्तिगत खातों के लिए पाने वाले को नामे लिखो एवं देने वाले को जमा करो।
  • वास्तविक खातों के लिए आने वाली वस्तु को नामे लिखो एवं जाने वाली वस्तु को जमा करो।
  • नाममात्र के खातों के लिए समस्त खर्चे एवं हानियों को नामे लिखो एवं समस्त आय एवं लाभों को जमा करो।

प्रश्न 16.
महाजनी बहीखाता प्रणाली को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर-
महाजनी अथवा भारतीय बहीखाता प्रणाली (Mahajani or Indian System of Accounting) इस प्रणाली को उद्भव भारत में ही हुआ है इसीलिए इसे भारतीय बहीखाता प्रणाली भी कहते हैं। यह विश्व की प्राचीनतम लेखा पद्धतियों में से एक है। इसमें लेन-देनों का लेखी करने के लिए लाल रंग की सलदार लम्बी-लम्बी बहियों का प्रयोग किया जाता है। यह प्रणाली पूर्ण, वैज्ञानिक एवं दोहरा लेखा सिद्धान्त पर आधारित है। देश के छोटे एवं मध्यम श्रेणी के व्यवसायी प्राचीन काल से ही इस पद्धति को अपना रहे हैं।

प्रश्न 17.
‘क्रय’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
क्रय (Purchase) – व्यवसाय में क्रय का तात्पर्य माल के क्रय से होता है न कि सम्पत्तियों के क्रय से । यदि व्यावसायिक संस्था क्रय-विक्रय करती है तो बेचने के लिए खरीदा गया मांल क्रय कहलाता है और यदि संस्था वस्तुओं का निर्माण करती है तो क्रय से तात्पर्य कच्चे माल के क्रय से होता है। यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि खरीदा गया माल पुनः विक्रय के लिये हो तभी उसे क्रय माना जायेगा अन्यथा नहीं,जैसे कोई व्यापारी फर्नीचर का व्यवसाय करता है तो उसके लिए फर्नीचर का क्रय,क्रय माना जायेगा लेकिन यदि कोई कपड़े का व्यापारी फर्नीचर क्रय करता है तो उसे सम्पत्ति का क्रय माना जायेगा।

प्रश्न 18.
व्ययों से क्या आशय है ? यह कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर-
व्यय (Expenses) – व्यय वह राशि होती है जो किसी वस्तु या सेवा को बनाने एवं बेचने के सम्बन्ध में खर्च की जाती है। ध्ययों को मोटे तौर पर निम्नलिखित दो भागों में बाँटा जा सकता है

  • प्रत्यक्ष व्यय (Direct Expenses) – एक व्यापारिक संस्था के वे व्यय जो प्रत्यक्ष रूप से अथवा सीधे-सीधे किसी विशेष उत्पाद या सेवा से सम्बन्धित होते हैं उन्हें प्रत्यक्ष व्यय कहते हैं। जैसे किसी उत्पाद विशेष की सामग्री,मजदूरी, बिजली आदि पर किया गया व्यये ।।
  • अप्रत्यको व्यय (Indirect Expenses) – ऐसे व्यय जो किसी विशेष उत्पाद या सेवा से सीधे-सीधे सम्बन्धित नहीं होते लेकिन उनका कुछ भाग उस उत्पाद के लिए व्यय होता है वे अप्रत्यक्ष व्यय कहलाते हैं। ऐसे व्यय एक से अधिक उत्पादों से सम्बन्धित होते हैं। ऐसे उत्पादों को कुछ निश्चित आधारों पर विभिन्न उत्पादों के मध्य विभाजित किया जाता है।

प्रश्न 19.
स्थगित आयगत व्यय से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
स्थगित आयगत व्यय (Deferred Revenue Expenses) कुछ व्यय ऐसे होते हैं जो न तो आयगत होते हैं और न ही पूँजीगत तथा ऐसे व्यय का लाभ एक से अधिक वर्षों तक प्राप्त होने की सम्भावना होती है। अतः ऐसे व्ययों को लाभ-हानि खाते में एक ही वर्ष में अपलिखित न करके आगे के वर्षों में धीरे-धीरे अपलिखित किया जाता है। इसलिए इन्हें स्थगित आयगत व्यय कहा जाता है।

प्रश्न 20.
लेखांकन की किन्हीं दो अवधारणाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
(i) द्विपक्षीय अवधारणा (Dual Aspect Concept) – इस अवधारणा के अनुसार प्रत्येक लेन-देन से दो खाते प्रभावित होते हैं एक नाम होता है तथा दूसरा जमा । यही कारण है कि नाम तथा जमा पक्ष का योग हमेशा बराबर रहता है। अर्थात् व्यवसाय की कुल सम्पत्तियों का मूल्य स्वामी की पूँजी व बाहरी लेनदारों के बराबर होता है।

(ii) आय वसूली अवधारणा (Revenue Recognition Concept) – इस अवधारणा के अनुसार विक्रय आदि के मूल्य प्राप्त होने पर ही उसे आगम माना जाता है । ब्याज, कमीशन, लाभांश आदि को आगम तभी माना जा सकता है जबकि व्यवसाय को उन्हें प्राप्त करने का कानूनी अधिकार प्राप्त हो गया हो । बिक्री को विक्रय की तिथि से तथा ब्याज, कमीशन, लाभांश आदि को समय के आधार पर आगम मान लिया जाता है।

प्रश्न 21.
लेखांकन की लागत एवं मिलान अवधारणा को समझाइए।
उत्तर-
लागत अवधारणा (Cost Concept) – स अवधारणा के अनुसार चल (Movable) एवं अचल (Fixed) सम्पत्तियों का लेखा बाजार मूल्य पर न करके लागत मूल्य पर किया जाता है। लागत मूल्य में सम्पत्ति के क्रय मूल्य के साथ-साथ उसे काम में लाने योग्य बनाने हेतु किये गये अन्य व्यय,जैसे-लाने का भाड़ा, स्थापना व्यय आदि भी सम्मिलित होते हैं। प्रतिवर्ष लागत मूल्य में से ह्रास घटाकर ही स्थिति विवरण में सम्पत्ति को दर्शाया जाता है।

मिलान अवधारणा (Matching Concept) – इस अवधारणा के अनुसार आगम को तभी मान्यता प्रदान कर दी जाती है जबकि विक्रय हो जाता है या सेवा प्रदान कर दी जाती है, रोकड़ प्राप्त हो या नहीं। इसी प्रकार व्यय को भी तभी मान्यता प्रदान कर दी जाती है जबकि सम्पत्ति या आगम का अर्जन हो गया हौ । इस प्रकार वर्ष के अन्त में वर्ष से सम्बन्धित आगमों एवं ऋणों को लाभ-हानि खाते में लिखकर लाभ-हानि की गणना कर ली जाती है।

प्रश्न 22.
वस्तुपरकता की अवधारणा को समझाइए।
उत्तर-
वस्तुपरकता की अवधारणा (Objectivity Concept) – लेखांकन में व्यक्ति विशेष के प्रभाव को रोकने के लिए तथा लेखांकन की सत्यता को बनाये रखने के लिए यह अवधारणा प्रत्येक लेन-देन का लेखा वस्तुनिष्ठ प्रकार से करने की अपेक्षा करती है। अतः प्रत्येक लेखा, स्रोत प्रलेख या प्रमाणक द्वारा प्रमाणित होना चाहिए । यही कारण है कि परिसम्पत्तियों का लेखा बीजक या कैश मीमो के आधार पर ऐतिहासिक लागत पर किया जाता है न कि बाजार मूल्य पर, क्योंकि बाजार मूल्य में व्यक्ति या स्थान के कारण भिन्नता आ सकती है।

प्रश्न 23. लेखांकन की एकरूपता की परम्परा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
एकरूपता की परम्परा (Convention of Consistency) – एकरूपता की परम्परा यह बताती है कि व्यवसाय में लेखांकन के सिद्धान्त एवं तरीके एक वर्ष से दूसरे वर्ष या आगे समान रहने चाहिए। इन सिद्धान्तों एवं नियमों में प्रतिवर्ष या शीघ्र ही परिवर्तन नहीं करने चाहिए। ऐसा करने से विभिन्न अवधियों के लाभ-हानि की तुलना करना एवं निष्कर्ष निकालना प्रबन्धकों एवं अन्य पक्षकारों के लिए आसान हो जाता है। परन्तु इस परम्परा का यह मतलब कतई नहीं है कि लेखांकन नीतियों एवं सिद्धान्तों में कभी कोई परिवर्तन नहीं होगा। अर्थात् बदली हुई परिस्थितियाँ एवं परिवेश को ध्यान में रखते हुए लेखांकन के सिद्धान्तों में परिवर्तन यदि आवश्यक हो, तो किया जा सकता है।

प्रश्न 24.
महत्वपूर्णता की परम्परा को समझाइए।
उत्तर-
महत्वपूर्णता की परम्परा (Convention of Materiality) – महत्वपूर्णता से तात्पर्य ऐसी महत्वपूर्ण जानकारी या तथ्य से है जिसकी जानकारी लेखा सूचनाओं के किसी उपयोगकर्ता के निर्णय को प्रभावित कर सकती है, जबकि उपयोगकर्ता के लिए कम महत्वपूर्ण जानकारी या तथ्यों को प्रकट करना आवश्यक नहीं होता है या फिर उन्हें अन्य सूचनाओं में सम्मिलित करके प्रस्तुत किया जाता है। कोई मद महत्वपूर्ण है या नहीं, इसका निर्णय लेखाकार द्वारा उपयोगकर्ता, संगठन या व्यक्ति की आवश्यकता को ध्यान में रखकर किया जाता है। एक ही मद एक व्यक्ति या संगठन के लिए उपयोगी/महत्वपूर्ण हो सकती है जबकि दूसरे के लिए वही मद अनुपयोगी हो सकती है।

Class 11 Accountancy Chapter 1 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
लेखांकन के अन्य शास्त्रों के साथ सम्बन्ध को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
लेखांकन का अन्य शास्त्रों के साथ सम्बन्ध (Accounting and Other Disciplines)

लेखांकन को विभिन्न शास्त्रों के साथ सम्बन्ध इस प्रकार है-
(i) लेखांकन एवं गणित (Accounting and Mathematics) – लेखांकन प्रणाली में जोड़, बाकी, गुणा, भाग आदि गणनाएँ की जाती हैं जिनका ज्ञान गणित से ही आता है। अतः गणित एवं लेखांकन में सम्बन्ध स्थापित हो जाता है। इसलिए लेखांकन का कार्य करने वाले व्यक्ति को गणित का ज्ञान होना भी आवश्यक है। अन्यथा लेखांकन का कार्य करने में उसे कठिनाई होगी।

(ii) लेखांकन एवं सांख्यिकी (Accounting and Statistics) – लेखांकन प्रणाली के अन्तर्गत सूचनाओं का सारांश निकालना, विश्लेषण करना, निर्वचन करना एवं उनको प्रस्तुत करने का कार्य किया जाता है। यह कार्य टेबल, ग्राफ, डायग्राम आदि के माध्यम से किया जाता है। अतः इस कार्य में सांख्यिकीय नियम व सूत्र आदि की जानकारी होना अति आवश्यक है। अतः सांख्यिकी एवं लेखांकन के मध्य महत्वपूर्ण सम्बन्ध होता है ।

(iii) लेखांकन एवं प्रबन्ध शास्त्र (Accounting and Management) – प्रबन्ध को निर्णय लेने हेतु लेखांकन सूचनाओं की आवश्यकता होती है तथा लेखाकार भी प्रबन्धकीय टीम का ही एक सदस्य होता है । अतः उसे यह पता होना चाहिए कि कब, कौन-सी सूचना किस रूप में उपलब्ध करानी है। प्रबन्ध शास्त्र का ज्ञान होने पर ही वह वांछित सूचनाओं के सम्बन्ध में निर्णय लेकर उन्हें सही समय पर प्रबन्ध को उपलब्ध करा सकता है। अतः लेखांकन एवं प्रबन्धशास्त्र के मध्य घनिष्ठ सम्बन्ध होता है।

(iv) लेखांकन एवं अर्थशास्त्र (Accounting and Economics) – आय, लाभ,पूँजी आदि की धारणा को अर्थशास्त्र के ज्ञान से ही समझा जा सकता है। अर्थशास्त्र में पूँजी एक वटवृक्ष मानी जाती है और आय/लाभ उस पर लगने वाले फल । अतः लेखांकन का कार्य करने वाले व्यक्ति को अर्थशास्त्र के सिद्धान्तों एवं नियमों का ज्ञान होना आवश्यक है।

(v) लेखांकन एवं विधि शास्त्र (Accounting and Law) – लेखांकन का कार्य करने वाले व्यक्ति के लिए यह आवश्यक है। कि उसे देश में प्रचलित लेखा सम्बन्धी कानूनों की जानकारी हो,अन्यथा व्यवसाय को अनेक प्रकार के आर्थिक दण्ड,जुर्माना आदि वहन करने पड़ेंगे। अतः लेखांकन एवं विधिशास्त्र का सम्बन्ध बहुत महत्वपूर्ण है।

(vi) लेखांकन एवं समाजशास्त्र (Accounting and Sociology) – व्यवसाय समाज में रहकर तथा समाज के साधनों का उपयोग करके ही लाभ कमाता है। अतः व्यवसाय का यह सामाजिक उत्तरदायित्व होता है कि वह समाज की अपेक्षाओं पर खरा उतरे। सामाजिक मनोदशा एवं अपेक्षा का ज्ञान समाज शास्त्र द्वारा ही प्रदान किया जाता है। अतः लेखांकन एवं समाज शास्त्र का आपसी सम्बन्ध महत्वपूर्ण होता है।

प्रश्न 2. लेखांकन की प्रणालियाँ कौन-कौन-सी हैं ? उनका विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर-
लेखांकन की प्रणालियाँ (Accounting System)

लेखांकन की निम्नलिखित तीन प्रणालियाँ हैं –
(i) एकल अंकन या इकहरा लेखा प्रणाली (Single Entry System) – इस प्रणाली में कुछ लेन-देनों का लेखा तो द्विपक्षीय संकल्पना के आधार पर किया जाता है कुछ का नहीं । इसमें नकद लेन-देनों का लेखा तो रोकड़ बही में किया जाता है तथा उधार का लेखा भरण-पुस्तिका में किया जाता है। सामान्यतया अव्यक्तिगत खातों से सम्बन्धित लेखे इस प्रणाली में नहीं किये जाते हैं। इस प्रणाली में तलपट भी नहीं बनाया जाता है जिससे कि लेखों की गणितीय शुद्धता का ज्ञान हो सके। इस प्रणाली से शुद्ध एवं सही लाभ-हानि को ज्ञान नहीं हो सकता है। अतः यह प्रणाली अपूर्ण, अव्यावहारिक तथा अवैज्ञानिक है।

(ii) द्वि-अंकन या दोहरा लेखा प्रणाली (Double Entry System) – दोहरा लेखा प्रणाली लेन-देनों के लेखांकन की द्विपक्षीय संकल्पना पर आधारित है। इसके अनुसार प्रत्येक लेन-देन का दो पक्षों पर प्रभाव पड़ता है—एक लेने वाला तथा दूसरा देने वाला। प्रत्येक लेन-देन दो खातों को प्रभावित करता है। इसके अनुसार, हर सौदे को नाम पक्ष तथा जमा पक्ष में लिखा जायेगा । अतः एक खाता डेबिट होगा तो दूसरा खाता अवश्य ही क्रेडिट होगा। यह प्रणाली पूर्ण एवं वैज्ञानिक प्रणाली है। खातों में होने वाली गणित सम्बन्धी अशुद्धियों का पता तलपट बनाने से चल जाता है। यदि तलपट के दोनों पक्षों का योग बराबर मिल जाता है तो खातों में गणित सम्बन्धी त्रुटि नहीं है।

(iii) भारतीय बहीखाता प्रणाली या महाजनी लेखा पद्धति (Indian System or Mahajani of Accounting) – इस प्रणाली का उद्गम भारत में होने के कारण इसे भारतीय बहीखाता प्रणाली कहा जाता है। यह विश्व की प्राचीनतम लेखा पद्धतियों में से एक है। भारत में इसका प्रयोग हजारों वर्षों से ब्याज पर उधार देने वाले महाजनों द्वारा किया जाता रहा है इसीलिए इसे महाजनी लेखा पद्धति भी कहा जाता है। इस पद्धति में लेन-देनों का लेखा हिन्दी या अन्य किसी भारतीय भाषा में लाल जिल्द चढ़ी हुई लम्बी-लम्बी बहियों में किया जाता है। इन बहियों में लाइनों के स्थान पर पेजों को मोड़कर सलें बनाकर लेखे किये जाते हैं । यह प्रणाली द्विपक्षीय संकल्पना पर आधारित तथा पूर्ण वैज्ञानिक है। इसमें प्रारम्भिक लेखा, खतौनी तथा अन्तिम खाते बनाये जाते हैं। आज भी छोटे एवं मध्यम श्रेणी के व्यापारी इसी पद्धति को अपना रहे हैं।

प्रश्न 3.
सम्पत्तियों एवं दायित्वों से क्या आशय है ? इनके प्रकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
सम्पत्तियों एवं दायित्वों से आशय : (Meaning of Assets and Liabilities)

1. सम्पत्तियाँ (Assets)-
व्यापार के स्वामित्व में प्रायः नकद, बैंक शेष, देनदार, प्राप्य बिल, स्टॉक, फर्नीचर, मशीन, भूमि एवं भवन आदि संसाधन उपलब्ध रहते हैं। इन संसाधनों से भविष्य में नकद प्राप्तियाँ भी होती हैं और लाभ भी अर्जित किया जाता है, अतः इन्हें सम्पत्तियाँ कहा जाता है । सम्पत्तियाँ मुख्य रूप से अग्रलिखित प्रकार की होती हैं

  • स्थायी सम्पत्तियों (Fixed Assets) स्थायी सम्पत्तियों से आशय उन सम्पत्तियों से है जिन्हें व्यवसाय में उपयोग हेतु लम्बे समय तक रखा जाता है। जैसे—भूमि एवं भवन, प्लाण्ट एवं मशीनरी, फर्नीचर, मोटर गाड़ियाँ आदि।
  • चालू सम्पत्तियाँ (Current Assets) ये ऐसी सम्पत्तियाँ होती हैं जो व्यवसाय द्वारा विक्रय हेतु रखी जाती है अथवा जिन्हें प्रायः एक लेखावर्ष के भीतर नकद में परिवर्तित कर लिया जाता है। इन्हें कार्यशील अथवा तरल अथवा फ्लोटिंग अथवा चक्रीय सम्पत्तियाँ भी कहा जाता है। उदाहरण के लिए स्टॉक, देनदार, प्राप्त बिल, पूर्वदत्त, रोकड़ एवं बैंक शेष आदि चालू सम्पत्तियाँ हैं।
  • दृश्य सम्पत्तियाँ (Tangible Assets) वे सम्पत्तियाँ जो भौतिक रूप से दिखायी देती हैं जिन्हें हम छू सकते हैं, उन्हें दृश्य सम्पत्तियाँ कहा जाता है। जैसे-भवन, भूमि,मशीनरी आदि । इसके विपरीत जो सम्पत्तियाँ भौतिक रूप से दिखायी नहीं देती हैं जिन्हें हम छू नहीं सकते, केवल महसूस कर सकते हैं, उन्हें अदृश्य सम्पत्तियाँ कहा जाता है । जैसे—ख्याति, कॉपीराइट, पेटेण्ट्स आदि ।
  • काल्पनिक सम्पत्तियाँ (Fictitious Assets) वे सम्पत्तियाँ जिनका कोई भौतिक अस्तित्व नहीं होता तथा केवल कल्पना के आधार पर मान ली जाती है उन्हें काल्पनिक सम्पत्तियाँ कहते हैं। जैसे—कभी-कभी ख्याति मूल्यहीन होने पर भी पुस्तकों में दिखायी। जाती है तब यह काल्पनिक सम्पत्ति होती है।

2. दायित्व (Liabilities)-
वह राशि जो व्यवसाय द्वारा अन्य व्यक्तियों एवं संस्थाओं को चुकायी जानी है उसे दायित्व कहा जाता है। ये निम्नलिखित प्रकार के होते हैं

  • बाहरी दायित्व (External Liabilities) व्यवसाय से बाहर के लोगों को देय राशियाँ बाहरी दायित्व कहलाती हैं। जैसे- दीर्घकालीन ऋण, लेनदार, देय बिल, अदत्त व्यय आदि ।
  • आन्तरिक दायित्व (Internal Liabilities) वे दायित्व जिनका भुगतान व्यवसाय के आन्तरिक लेनदारों को एक लम्बी अवधि के बाद करना होता है उन्हें आन्तरिक दायित्व कहते हैं। इसमें पूँजी, पूर्वाधिकारी, अंश, व्यवसाय को ऋण आदि को सम्मिलित किया जाता है।
  • अल्पकालीन दायित्व (Short-term Liabilities) ऐसे दायित्व जिनका भुगतान प्रायः एक वर्ष में करना होता है वे अल्पकालीन दायित्व कहलाते हैं। जैसे—लेनदार, देय बिल, सरकार को देय कर आदि ।
  • दीर्घकालीन दायित्व (Long-term Liabilities) वे दायित्व जिनका भुगतान सामान्यतः एक लम्बी अवधि के बाद किया जाना होता है उन्हें दीर्घकालीन दायित्व कहते हैं। जैसे-दीर्घकालीन ऋण, ऋणपत्र, पूर्वाधिकार अंश पूँजी एवं पूँजी आदि ।

प्रश्न 4.
लेखांकन की किन्हीं चार अवधारणाओं का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर-
लेखांकन की अवधारणाएँ (Accounting Concepts)
(i) व्यावसायिक इकाई अवधारणा (Business Entity Concept) व्यावसायिक इकाई को इसके स्वामी से पृथक माना जाता है। यह पृथकत्य लेखांकन में ही होता है। स्वामी द्वारा व्यवसाय के साथ किए हुए सौदे उसी प्रकार माने जाते हैं जैसे कि इन्हें बाहरी लोगों ने किया हो । यद्यपि स्वामी व्यापार में पूँजी लगाता है पर व्यवसाय के लिए यह दायित्व है जो आहरण स्वामी द्वारा किए जाते हैं, उनके लिए एक अलग खाता खोला जाता है। इसी अवधारणा के आधार पर व्यवसाय का लाभ या हानि सही-सही निकलता है।

(ii) मुद्रामापन की अवधारणा (Money Measurement Concept)-लेखांकन की मुद्रा माप की अवधारणा यह स्पष्ट करती है कि लेखांकन में केवल उन्हीं लेन-देनों या घटनाओं का लेखा होगा जिनका मूल्यांकन मुद्रा में किया जा सकता है। ऐसे लेन-देन जिन्हें मुद्रा में नहीं मापा जा सकता है उनका लेखा लेखांकन में नहीं होगा चाहे वह व्यापार के लिए कितने ही महत्वपूर्ण क्यों न हों। जैसे—प्रबन्धक की ईमानदारी व विश्वसनीयता, कर्मचारियों की अच्छी टीम, सरकारी नीति इत्यादि ।।

(ii) व्यापार/निरन्तरता की अवधारणा (Business/Going Concern Concept)-लेखापालक की यह अवधारणा होनी चाहिए कि व्यवसाय चलता रहेगा और बन्द नहीं होगा। इसी अवधारणा के आधार पर लेखे किए जाने चाहिए। यही कारण है कि जब वर्ष समाप्त होता है और अन्तिम खाते बनाए जाते हैं तब अदत्त व्यय और पूर्वदत्त व्ययों का भी लेखा किया जाता है क्योंकि लेखापालक यह जानता है कि व्यवसाय भविष्य में चालू रहेगा और ये समायोजनाएँ आगे आने वाली अवधि में समायोजित हो जायेंगी।

(iv) लेखांकन अवधि अवधारणा (Accounting Period Concept) व्यापार का उद्देश्य लाभ कमाना है। लाभ की गणना निर्धारित अवधि के व्यापार पर आधारित होती है। व्यापारी भी अपने व्यवसाय की लाभार्जन क्षमता को जानने के लिए निर्धारित अवधि पर लाभ का आकलन करता है । इस अवधारणा के आधार पर लाभ का आकलन करने हेतु निर्धारित अवधि सामान्यतः एक वर्ष मानी गयी है। 12 महीने की इस अवधि को ही लेखांकन अवधि कहते हैं। आयकर अधिनियम, 1961 के आधार पर लेखा अवधि समय 1 अप्रैल से 31 मार्च माना गया है।

प्रश्न 5.
लेखांकन की विभिन्न परम्पराओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
लेखांकन की परम्पराएँ (Accounting Conventions)
लेखांकन परम्पराओं को सामान्य रूप से लेखाकारों के मध्य आपसी समझ से चली आ रही परिपाटी के रूप में समझा जा सकती है। इनका कोई कानूनी आधार नहीं होता है। प्रमुख लेखांकन परम्पराएँ निम्नलिखित हैं

(i) एकरूपता की परम्परा (Convention of Consistency) इस परम्परा के अनुसार लेखे करते समय प्रतिवर्ष एक जैसी लेखांकन पद्धतियों एवं नियमों का पालन करना चाहिए। ऐसा करने से विभिन्न अवधियों के लाभ-हानि की तुलना करना तथा निष्कर्ष निकालना प्रबन्धकों के लिए आसान हो जाता है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि लेखांकने नीतियों व सिद्धान्तों में कभी कोई परिवर्तन नहीं होगा। अर्थात् बदली हुई परिस्थितियों एवं परिवेश को ध्यान में रखते हुए लेखांकन सिद्धान्तों में आवश्यक परिवर्तन किये जा सकते हैं।

(ii) पूर्ण प्रकटीकरण की परम्परा (Convention of Full Disclosure) इस परम्परा के अनुसार व्यवसाय के वित्तीय मामलों से सम्बन्धित सभी महत्वपूर्ण सूचनाओं को पूर्ण रूप से प्रकट कर देना चाहिए जिससे कि इनके प्रयोगकर्ताओं के मध्य कोई भ्रम की स्थिति न रहे । यह परम्परा इतनी महत्वपूर्ण है कि इससे सम्बन्धित प्रावधान भारतीय कम्पनी अधिनियम, 2013 में भी किये गये हैं। अतः कोई सूचना लाभ-हानि खाते या स्थिति विवरण से स्पष्ट न हो तो उसे नीचे Notes on Accounts या Footnotes के रूप में भी दिया जा सकता है, लेकिन इस परम्परा का यह आशय नहीं है कि व्यवसाय की गुप्त सूचनाएँ भी सार्वजनिक की जाएँ।

(iii) रूढ़िवादिता की परम्परा (Convention of Conservatism) इसे सतर्कता की परम्परा भी कहा जा सकता है। इसका आशय लेखांकन में सुरक्षा या सावधानी की नीति अपनाने से है। इस परम्परा के अनुसार भविष्य में होने वाली सम्भावित हानियों या दायित्वों के लिए तो लेखों में व्यवस्था कर ली जानी चाहिए लेकिन सम्भावित लाभों या आयों को छोड़ देना चाहिए।

(vi) महत्वपूर्णता की परम्परा (Convention of Materiality) महत्वपूर्णता से तात्पर्य ऐसी जानकारी या तथ्य से है जो उपयोगकर्ता के निर्णय को प्रभावित कर सकती है। यह परम्परा पूर्ण प्रकटीकरण की परम्परा के विपरीत है। इसके अनुसार सूचना प्राप्त करने वाले को वही सूचना देनी चाहिए जो उसके लिए आवश्यक हो । अमेरिकन लेखा परिषद् के अनुसार, एक मद तभी महत्वपूर्ण मानी जाती है जबकि यह विश्वास करने का कारण हो कि उस मद की जानकारी सूचित व्यक्ति के निर्णय को प्रभावित करेगी । महत्वपूर्ण मद एक संगठन से दूसरे संगठन या एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के लिए अलग-अलग हो सकती है । इसके निर्णय के लिए लेन-देन की प्रकृति, रकम तथा लेखाकार का निर्णय महत्वपूर्ण होता है।


Class 11 Accountancy Chapter 1 लेखाशास्त्र का परिचय

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